Tuesday, March 25, 2014

सियासत और धर्म का 'काशी कॉकटेल'



सियासत और धर्म का 'काशी कॉकटेल'





मशहूर शहनाई वादक भारत रत्न उस्ताद बिस्मिलाह खान का शहर काशी, जिसे मोक्ष की नगरी कहा जाता है, पिछले कुछ दिनों से मीडिया की सुर्खियों में बना हुआ है. वजह साफ है, बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी यहां से चुनाव लड़ रहे हैं. उन्हें टक्कर देने के लिए आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भी इसी नगरी को चुना है. उधर, कांग्रेस भी इस सीट को नजरअंदाज नहीं कर रही है. कांग्रेस किसी भारी भरकम सियासी शख्स को यहां से उतारने की कोशिश कर रही है लेकिन उससे पहले केजरीवाल ने काशी पहुंचकर, गंगा में डुबकी लगाकर और भैरोनाथ और बाबा विश्वनाथ के दर्शन कर यहां की सियासी फिजां में एक नई धुन की तान छेड़ दी है. 

मंगलवार को शिवगंगा एक्सप्रेस से वाराणसी पहुंचे केजरीवाल ने गंगा में डुबकी लगाई,  मंदिरों के दर्शन किए और ऐलान किया कि गंगा में बहुत गंदगी है जिसकी सफाई की जरूरत है. केजरीवाल का संदेश साफ था कि आस्था के मोर्चे पर वो कहीं से 19 नहीं हैं. उन्होंने इस चुनावी समर को धर्मयुद्ध सा माहौल देते हुए सबसे दशाश्वमेध घाट पर गंगा स्नान किया. गंगा की गंदगी की तुलना भ्रष्टाचार से कर ठेठ बनारसी संवेदना को छूने की कोशिश की. बनारस में घर-घर पूजा होती है और वहां की संस्कृति में गंगा रची-बसी है. माना जा रहा है कि गंगा स्नान और पूजा कर केजरीवाल ने सबसे पहले संवेदना के स्तर पर बनारसियों से रिश्ता बनाने की कोशिश की है.


गंगा स्नान के बाद शुरू हुआ काशी के मंदिरों में दर्शनों का सिलसिला. पहले केजरीवाल भैरो मंदिर के दर्शन को गए और फिर बाबा विश्वनाथ के दर्शन को गए. इसके बाद मशहूर संकटमोचन मंदिर का रुख किया. मंदिर में दर्शन के बाद केजरीवाल ने कहा कि मैं यहां जीत के लिए नहीं आया हूं, देश के लिए आया हूं. देश को बचाना है. जीत मेरी नहीं है और हार भी मेरी नहीं है. राहुल और मोदी दोनों को हराना जरूरी है. राहुल को हराने के लिए कुमार विश्वास अमेठी गए हैं और मैं यहां आया हूं.

केजरीवाल संकट मोचन मंदिर के पूर्व महंत और गंगा स्वच्छता अभियान चलाने वाले स्वर्गीय वीरभद्र मिश्रा के परिवार से भी मिले. इसके जरिए केजरीवाल ने लोकल बनारस में पैठ बढ़ाने की कोशिश की है. हालांकि विरोधी इसे केजरीवाल का नाटक कह रहे हैं. इस बीच केजरीवाल पर विश्वनाथ मंदिर के पास अंडे फेंके गए. बाद में केजरीवाल समेत कई लोगों पर स्याही भी फेंकी गई लेकिन आप नेताओं और कार्यकर्ताओं का हौसला परवान चढ़ता गया. केजरीवाल ने लहुरावीर मैदान में आयोजित रैली में कांग्रेस-बीजेपी पर खुलकर निशाना साधा. साथ में जनसभा को अजान के लिए थोड़ी देर के लिए रोककर धार्मिक सहिष्णुता का शगूफा भी छोड़ा. ये शगूफा उन्हें मुस्लिमों वोटों के ध्रुवीकरण में काफी मदद कर सकता है.

दरअसल, केजरीवाल और मोदी जानते हैं कि बनारस में पैठ बनानी है तो गंगा और शिव को आचरण में ढालना होगा. गंगा यानी लाख गंदगी के बाबजूद सबको साथ लेकर अविरल कल-कल छल-छल धारा की तरह सतत आगे बढ़ने की कला और शिव का मतलब तमाम साजिशकर्ताओं-विरोधियों के हमले का विषपान कर नीलकंठ बनने की कला. अब 2014 के सियासी समुद्रमंथन का नीलकंठ कौन बनता है, ये बनारस की जनता, वहां की आबो-हवा और सदियों से चली आ रही सामाजिक सद्भाव की संस्कृति तय करेगी.

Monday, February 24, 2014

चिराग के लिए झोपड़ी रख दी गिरवीं ?



90 के दशक में बिहार की सियासी फिजां में एक जुमला काफी चर्चित था. हम उस घर में दीया जलाने आए हैं, जहां सदियों से अंधेरा है इस जुमले को परवान चढ़ाया था दलित नेता रामविलास पासवान ने. तब पासवान को नहीं पता था कि उन्हें अपने ही घर का चिराग (उनके बेटे का नाम भी चिराग है) रौशन करने के लिए अपने घर (एलजेपी का चुनाव चिह्न) को ही गिरवीं रखनी पड़ेगी. वो भी उनके हाथों जिन्हें वो जी भरकर कोसते रहे हैं. यहां तक कि उसी की वजह से रामविलास वो गलियां भी छोड़ आए थे, जिसने उन्हें अगाध कोयला खदानों और खनिजों का मुखिया बना रखा था.
                दरअसल, रामविलास पासवान एक ऐसे नेता रहे हैं जिन्होंने कभी सबसे अधिक वोटों से लोकसभा जीतने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था लेकिन साल 2009 के 15वीं लोकसभा चुनावों में न तो वो खुद जीत सके और न ही उनकी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी का कोई नुमाइंदा संसद पहुंच सका. तब उन्होंने लालू के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा था. हालांकि बाद में साल 2010 में लालू ने ही रामविलास पासवान को संसद के उच्च सदन में कुर्सी दिलाई. तब लगा कि बिहार में लालू के MY समीकरण में DM भी जुड़ गया है. यानी यादव (Y), दलित (D) और मुसलमान (M) जिनका कुल वोट बैंक के करीब 30 फीसदी से ज्यादा हिस्से पर कब्जा है.
                दलितों और मुसलमानों के प्रति अपने अगाध प्रेम के लिए मशहूर रामविलास ने साल 2002 में गुजरात दंगों के बाद एनडीए का साथ छोड़ दिया था और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार से इस्तीफा दे दिया था. तब वो केन्द्र में खनन और कोयला मंत्री थे. पासवान की पार्टी एलजेपी एनडीए सरकार की घटक थी लेकिन गुजरात में वर्ष 2002 में हुए दंगों के बाद  इस गठबंधन से अलग हो गई थी. तब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे.
              रामविलास पासवान के एनडीए छोड़ने के बाद धीरे-धीरे अन्य दलों ने भी एनडीए गठबंधन से किनारा कर लिया और इसके विघटन से 2004 में कांग्रेस नीत यूपीए (यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलाइंस) के सत्तारुढ़ होने की राह बनी. पासवान साल 2004 में इस गठबंधन से जुड़े और केन्द्र में रासायनिक र्वरक और स्टील मंत्री बने. तब लोकसभा में उनके 4 सदस्य थे.  आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद इस सरकार में रेल मंत्री थे. यूपीए सरकार के इन दोनों मंत्रियों के बीच क्षेत्रीय और वोटबैंक वर्चस्व की लड़ाई ने दूरियां बढ़ा दीं लेकिन साल 2008 के अंत तक दोनों फिर करीब आ गए और 2009 में लोकसभा चुनाव बिना कांग्रेस के मिलकर लड़ा.

                 वर्ष 2004 में कांग्रेस, आरजेडी और एलजेपी ने बिहार में मिल कर चुनाव लड़ा और 40 में से 29 सीटें जीतीं. आरजेडी को 22, एलजेपी को 4 और कांग्रेस को तब 3 सीटें मिली थीं. वर्ष 2009 में कांग्रेस के बिना चुनाव लड़ने वाले रामविलास न केवल खुद अपनी लोकप्रिय सीट हाजीपुर से हारे बल्कि उनकी पार्टी का खाता भी नहीं खुला. उस वक्त आरजेडी को 4 और कांग्रेस को दो सीटें मिली थीं. 
                 इस बार लालू और पासवान दोनों ने कांग्रेस के साथ जाने की इच्छा जताई. लालू ने जहां कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी से मुलाकात की वहीं पासवान ने भी इस मुद्दे पर कांग्रेस अध्यक्ष के साथ विचार विमर्श किया लेकिन ये मुलाकात अभी तक किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी. इसी बीच खबरें आईं कि चिराग पासवान को नरेन्द्र मोदी अच्छे लगने लगे हैं. यहां तक कि पापा रामविलास भी झोपड़ी बचाने के लिए साल 2002 के पॉलिटिकल स्टैंड से पीछे हटने को तैयार हो गए हैं.

Saturday, February 2, 2013

कांग्रेस कृपा से मोदी बनेंगे PM ?


गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 आम चुनावों के बाद अगर प्रधानमंत्री बनते हैं तो ये कांग्रेस की कृपा से ही संभव होगा. क्योंकि देश की मौजूदा राजनीतिक स्थिति में मोदी का पलड़ा भारी दिखाई दे रहा है. शायद यही वजह है कि बीजेपी में भी अब मोदी के नाम राय बनने लगी है.

बीजेपी में मोदी के नाम पर सहमति बनती देख कई सियासी पार्टियों में भी हलचल तेज हो गई है. समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता और यूपी कैबिनेट में मंत्री आजम खान ने तो सीधे तौर पर इसके लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने कहा कि "कांग्रेस ने मनमोहन सिंह को पीएम बना तो दिया लेकिन उन्हें ये बताया नहीं कि वो प्रधानमंत्री भी हैं." अब ऐसे में पीएम पद की रेस में बीजेपी की अकांक्षाएं तो कुलांचें मारेंगी ही.

2014 आम चुनाव और पीएम पद पर अतिसक्रियतावाद में जी रही बीजेपी के यूपी अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी  नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी की तुलना अलग अंदाज में करते हैं. बाजपेयी ने कहा कि “कहां नरेंद्र मोदी राजा भोज और कहां राहुल गांधी डॉट..डॉट..डॉट..’’ इसके अलावा बाजपेयी ने ये भी कहा है कि 'राहुल गांधी असफल व्यक्तित्व हैं जबकि मोदी एक सफल राष्ट्रीय व्यक्तित्व हैं.' 

यानी, नरेंद्र मोदी के नाम पर बीजेपी में गजब उत्साह है. अभी हाल में बीजेपी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने नरेंद्र मोदी पर एनडीए की सहयोगी जेडीयू को किनारे हो जाने के लिए कहा था. अब यूपी से ही बीजेपी के दूसरे वरिष्ठ नेता कलराज मिश्र ने भी नरेंद्र मोदी के पीएम बनने की बात कह दी है.

मौजूदा राजनीतिक हालात पर टिप्पणीकार मानने लगे हैं कि जिन आर्थिक सुधारों के रास्ते कांग्रेस सत्ता में हैट्रिक मारने का ख्वाब देख रही है, वो डगर कांटों वाली है क्योंकि आर्थिक सुधारों के नाम पर आम आदमी को यूपीए सरकार ने डीजल-पेट्रोल की कीमतों में बढोत्तरी, रसोई गैस की कैपिंग, रेलवे किराए में बढोत्तरी, महंगाई, और भ्रष्टाचार का अनमोल उपहार दिया है. देश का आमजन और युवा इस वक्त भयंकर हताशा और निराशा में है. उनमें रोष और गुस्सा है, जो चुनाव के वक्त फूट कर कांग्रेस की राह का रोड़े बरसा सकते हैं. इससे उलट बीजेपी के नरेन्द्र मोदी की छवि विकास पुरूष के रूप में उभरी है. युवाओं का भरोसा मोदी पर बढ़ा है.

Saturday, May 7, 2011

मां...




कल रात सपने में आईं मां...
मूंदे नयनों में इक लौ जला गईं मां।
सालों पहले,
उंगली पकड़कर चलना सिखाया,
जिंदगानी की महफ़िल में इक शमा जलाया।
मगर,
इस वीरान शहर में,
जज़्बातों के श्मसान में,
अब, कोई अपनापन दिखाता नहीं,
अरमानों की सीढ़ियां चढ़ाता नहीं,
लड़खड़ाने पर भी कोई उठाता नहीं,
तब, मां की कमी खूब खलती है....।
देर रात जब,
रंगीन दुनिया बेनूर हो जाती है,
चंदा मामा भी आलस्य के आगोश में समा जाता है,
तब, रात की तन्हाई में,
दीये का उजाला लिए,
चुपचाप,
सिरहाने आती हैं मां....।
और,
बंद आंखों में
जीने की ललक जगा जाती हैं मां...
कहती हैं,
हसरतों की उड़ान टलने ना दो,
जिंदगी की रफ्तार थमने ना दो,
ये अंधेरा वक्त दो वक्त का है,
शाम-बेशाम क़ाफ़ूर हो जाएगा।
कल रात सपने में आईं मां...
मूंदे नयनों में इक लौ जला गईं मां।
(प्रमोद प्रवीण)

Sunday, October 24, 2010

बिहार में दो चरणों में कुल 92 सीटों पर विधानसभा चुनाव हो चुके हैं...पहले चरण में 54 और दूसरे चरण में 53 फीसदी वोटरों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया..आयोग इसे बड़ी कामयाबी मान रहा है..इसके पीछे जन जागरण और सरकारी प्रयासों को श्रेय दे रहा है.. लोकतंत्र के इस महापर्व में युवाओं, बुजूर्गों और महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.. लेकिन सबसे अच्छी बात ये रही कि उनलोगों ने भी इस महापर्व में बढ़-चढ़कर भागीदारी निभाई,,जो शारीरिक रुप से कमजोर थे...या फिर, बैसाखी के सहारे चल रहे थे.. दूसरे चरण में तो समस्तीपुर में एक अधेड़ बाप अपनी दो जन्मांध बेटियों को कांधे पर लेकर वोटिंग बूथ की तरफ जाता दिखा... पूरे बिहार ने इस पिता को औऱ ऐसे वोटरों की हिम्मत और जज्बे को सलाम किया.. ऐसे जांबाजों को मेरा भी सलाम... लेकिन, चुनाव आयोग जैसे संवैधानिक संस्थानों को थोड़ा रुककर सोचना चाहिए... कि,, क्या ऐसे लोगों को ब्रांड अम्बेस्डर नहीं बनाया जाना चाहिए.. क्या, ऐसे लोगों को अपने अधिकारों के प्रति जागरुक होने और उसका इस्तेमाल करने के लिए पुरस्कृत नहीं किया जाना चाहिए..उस वक्त,, जब अधिकांश आबादी, खासकर शहरी मतदाता और युवा वर्ग मताधिकार का उपयोग करने से दूर भागता हो.. लोकतंत्र के ऐसे रणबांकुरों के उत्साह और जज्बे को फिर सलाम।।।

जल्द आ रहा हूं...

महोदया/ महोदया,
बीमारी और अतिव्यसत्तता के उपरांत लंबे अंतराल के बाद जल्द ब्लॉग पर आ रहा हूं..
धन्यवाद..

Wednesday, July 21, 2010

मदारी भी और खिलाड़ी भी




पिछले पन्द्रह सालों के जिस कुशासन के लिए लालू-राबड़ी सरकार बदनाम रही,,,और जनता ने जिसके खिलाफ जनादेश देकर नीतीश को सत्ता के शीर्ष शिखर तक पहुंचाया... नीतीश सरकार भी कमोबेश, उसी जमात में अब शामिल होती नजर आ रही है। सीएजी की रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ है कि साल २००२ से लेकर साल २०१० तक करीब सोलह हजार करोड़ रुपए का ट्रेजरी घोटाला बिहार में हुआ है। घोटालों के इन आठ सालों में साढ़े तीन साल लालू-राबड़ी शासन के हैं,,जबकि साढ़े चार साल नीतीश के सुशासन का काल है।
यानी, लूट-खसोट का जो सिलसिला लालू-राबड़ी ने शुरु किया था,,उसे नीतीश सरकार ने भी पालने-पोषने का ही काम किया है। लुटेरों की अपनी जमात में शामिल होने पर जब लालू प्रसाद और उनकी पार्टी राजद ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से इस्तीफा मांगा तब सियासत गर्म हो गई। मामले में सीबीआई जांच के पटना हाईकोर्ट के निर्देश ने भी तड़का लगाने का काम किया।
दरअसल, नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर सभी विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को चुनावी ब्रह्मास्त्र समझ लिया। फिर क्या था...संग्राम तो मचना ही था...क्योंकि सभी सियासतदानों को अपनी सियासत चमकाने का इससे भला मौका और कहां मिलने वाला था...लिहाजा, सभी विपक्षी दलों ने एक साथ नीतीश कुमार से इस्तीफे की मांग कर डाली.. और सदन से सड़क तक मोर्चा संभाल लिया। तोड़फोड़ का। धरना प्रदर्शन का। और कैमरे पर अपने-अपने अनूठे अंदाज पेश करने का।

इन सबके बीच मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष विपक्षियों के निशाने पर रहे। खासकर स्पीकर उदय नारायण चौधरी। जिनपर सदन में चप्पल तक फेंकी गई। सियासी गलियारों में ये भी चर्चा है कि स्पीकर सत्तारुढ़ दल के हैं...या फिर पूरे सदन के? अगर पूरे सदन के हैं तो रातभर विधानसभा के बाहर धरना दे रहे विधायकों का हालचाल पूछने वो क्यों नहीं आए ? उन्होंने उन महिला विधायकों का खैर मकदम क्यों नहीं किया..? हंगामा करने पर तुरंत मार्शल का सहारा क्यों लिया..? और आखिरकार उन्होंने पटना हाईकोर्ट के निर्देश को चुनौती भी दे डाली। इधर, लालू अब पूछ रहे हैं कि नीतीश सरकार अगर घोटाले में शामिल नहीं है,,तो वो सीबीआई जांच से क्यों हड़क रही है।

अब सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों में ठन गई है।बिहार की राजनीति के चाणक्य कहलाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जहां अपने को बेदाग बताकर चुनावी बैतरणी पार करने की जुगत में हैं..वहीं लालू प्रसाद समेत तमाम विपक्ष नीतीश को घोटालेबाज और भ्रष्ट बताकर उनकी धार कुंद करने की फिराक में है। मगर ये नुमाइंदे भूल बैठे हैं कि विधानसभा से बड़ा अखाड़ा चुनाव का मैदान होता है, जहां गमला तोड़ प्रतियोगिता नहीं चलने वाली।

कुल मिलाकर बिहार विधानसभा दो दिनों से बेशर्मी की सभा बनी हुई है, जहां हमारे नुमाइंदे अपने मूल कर्तव्य से हटकर वो सबकुछ कर रहे हैं...जिससे सियासी सिक्का चमकता है..या यूं कहें कि चमकाया जाता है। दरअसल, ये नौटंकी नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों की पटकथा मात्र है...जिसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष,,दोनों... एक ही तमाशे के मदारी भी हैं और खिलाड़ी भी...