Wednesday, July 21, 2010

मदारी भी और खिलाड़ी भी




पिछले पन्द्रह सालों के जिस कुशासन के लिए लालू-राबड़ी सरकार बदनाम रही,,,और जनता ने जिसके खिलाफ जनादेश देकर नीतीश को सत्ता के शीर्ष शिखर तक पहुंचाया... नीतीश सरकार भी कमोबेश, उसी जमात में अब शामिल होती नजर आ रही है। सीएजी की रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ है कि साल २००२ से लेकर साल २०१० तक करीब सोलह हजार करोड़ रुपए का ट्रेजरी घोटाला बिहार में हुआ है। घोटालों के इन आठ सालों में साढ़े तीन साल लालू-राबड़ी शासन के हैं,,जबकि साढ़े चार साल नीतीश के सुशासन का काल है।
यानी, लूट-खसोट का जो सिलसिला लालू-राबड़ी ने शुरु किया था,,उसे नीतीश सरकार ने भी पालने-पोषने का ही काम किया है। लुटेरों की अपनी जमात में शामिल होने पर जब लालू प्रसाद और उनकी पार्टी राजद ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से इस्तीफा मांगा तब सियासत गर्म हो गई। मामले में सीबीआई जांच के पटना हाईकोर्ट के निर्देश ने भी तड़का लगाने का काम किया।
दरअसल, नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर सभी विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को चुनावी ब्रह्मास्त्र समझ लिया। फिर क्या था...संग्राम तो मचना ही था...क्योंकि सभी सियासतदानों को अपनी सियासत चमकाने का इससे भला मौका और कहां मिलने वाला था...लिहाजा, सभी विपक्षी दलों ने एक साथ नीतीश कुमार से इस्तीफे की मांग कर डाली.. और सदन से सड़क तक मोर्चा संभाल लिया। तोड़फोड़ का। धरना प्रदर्शन का। और कैमरे पर अपने-अपने अनूठे अंदाज पेश करने का।

इन सबके बीच मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष विपक्षियों के निशाने पर रहे। खासकर स्पीकर उदय नारायण चौधरी। जिनपर सदन में चप्पल तक फेंकी गई। सियासी गलियारों में ये भी चर्चा है कि स्पीकर सत्तारुढ़ दल के हैं...या फिर पूरे सदन के? अगर पूरे सदन के हैं तो रातभर विधानसभा के बाहर धरना दे रहे विधायकों का हालचाल पूछने वो क्यों नहीं आए ? उन्होंने उन महिला विधायकों का खैर मकदम क्यों नहीं किया..? हंगामा करने पर तुरंत मार्शल का सहारा क्यों लिया..? और आखिरकार उन्होंने पटना हाईकोर्ट के निर्देश को चुनौती भी दे डाली। इधर, लालू अब पूछ रहे हैं कि नीतीश सरकार अगर घोटाले में शामिल नहीं है,,तो वो सीबीआई जांच से क्यों हड़क रही है।

अब सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों में ठन गई है।बिहार की राजनीति के चाणक्य कहलाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जहां अपने को बेदाग बताकर चुनावी बैतरणी पार करने की जुगत में हैं..वहीं लालू प्रसाद समेत तमाम विपक्ष नीतीश को घोटालेबाज और भ्रष्ट बताकर उनकी धार कुंद करने की फिराक में है। मगर ये नुमाइंदे भूल बैठे हैं कि विधानसभा से बड़ा अखाड़ा चुनाव का मैदान होता है, जहां गमला तोड़ प्रतियोगिता नहीं चलने वाली।

कुल मिलाकर बिहार विधानसभा दो दिनों से बेशर्मी की सभा बनी हुई है, जहां हमारे नुमाइंदे अपने मूल कर्तव्य से हटकर वो सबकुछ कर रहे हैं...जिससे सियासी सिक्का चमकता है..या यूं कहें कि चमकाया जाता है। दरअसल, ये नौटंकी नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों की पटकथा मात्र है...जिसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष,,दोनों... एक ही तमाशे के मदारी भी हैं और खिलाड़ी भी...

7 comments:

  1. bihar ke bare mein janane ki ichha hai.kya vahan neeteesh ji ke aane ke baad koi parivartan dikha hai?kabhi muhawron,vyangyoktiyon se hat kar seedhe seedhe likhiye.

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  2. बहुत सही लिखा आपने

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  3. लेख का शीर्षक काफी काव्यात्मक है . इससे ये लगता है कि आप इसी समाचार पत्र में कार्य करने कि पूरी-पूरी योगयता रखते है .नये ब्लॉग के लिए बधाई. लिखते रहें .

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  4. इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  5. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  6. bahut hi sahi likha hai aapne.
    ye log svayam hi khiladi hain aur madari bhi.

    हिन्दी ब्लॉगजगत के स्नेही परिवार में इस नये ब्लॉग का और आपका मैं ई-गुरु राजीव हार्दिक स्वागत करता हूँ.

    मेरी इच्छा है कि आपका यह ब्लॉग सफलता की नई-नई ऊँचाइयों को छुए. यह ब्लॉग प्रेरणादायी और लोकप्रिय बने.

    यदि कोई सहायता चाहिए तो खुलकर पूछें यहाँ सभी आपकी सहायता के लिए तैयार हैं.

    शुभकामनाएं !


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  7. श्री राजीव जी, सुझाव और महत्ती टिप्पणी के लिए साधुवाद।
    मैनें वर्ड वेरिफिकेशन हटा दिया है। धन्यवाद

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